सोशल मीडिया की आज़ादी और अदालत की जिम्मेदारी: स्वामी रामभद्राचार्य विवाद की पूरी कहानी (Freedom on Social Media and Court’s Role: The Full Story of Swami Rambhadracharya Controversy)
सोशल मीडिया और इंटरनेट युग में “शब्द की शक्ति” का स्वरूप बदल गया है। अवांछित, अपमानजनक या defamatory सामग्री अब त्वरित रूप से व्यापक दर्शकों तक पहुँच सकती है। इस बीच, भारतीय न्यायपालिका समय-समय पर ऐसे मामलों में हस्तक्षेप कर रही है, जहाँ किसी व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा, संवैधानिक अधिकारों और इंटरनेट प्लेटफार्म की जिम्मेदारी के बीच टकराव उत्पन्न होता है।
हाल ही में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक त्वरित और सख्त आदेश जारी किया है जिसमें Meta और Google को 48 घंटे के भीतर स्वामी रामभद्राचार्य पर आपत्तिजनक वीडियो हटाने का निर्देश दिया गया। यह विवाद न केवल एक संत विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विकलांग अधिकारों और डिजिटल प्लेटफार्मों की जिम्मेदारी पर एक अध्ययन-विषय बन गया है।
इस लेख में हम निम्नलिखित विषयों का गहरा विश्लेषण करेंगे:
- स्वामी रामभद्राचार्य का परिचय और उनकी प्रतिष्ठा
- घटनाक्रम: विवादित वीडियो, याचिका और अदालत का आदेश
- कानूनी आधार: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, विकलांगता अधिकार अधिनियम, मध्यस्थ (intermediary) उत्तरदायित्व
- न्यायालय और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के बीच संतुलन
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम प्रतिष्ठा संरक्षण
- भविष्य की चुनौतियाँ, नीतिगत सुझाव
1. स्वामी रामभद्राचार्य – जीवन, कृतित्व और प्रतिष्ठा
स्वामी रामभद्राचार्य (जगतगुरु रामभद्राचार्य) भारतीय आध्यात्मिक, साहित्यिक और सामाजिक जगत में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। उन्हें मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं से पहचान दी जाती है:
- दृष्टिहीनता और शिक्षावृत्ति: स्वामी रामभद्राचार्य बचपन में दृष्टिहीन हो गए। इसके बावजूद उन्होंने संस्कृत, धर्मशास्त्र, वेद-वास्तु आदि विषयों में गहरी पकड़ बनाई।
- संस्थापक एवं शिक्षा-प्रयास: वे “Jagadguru Swami Ram Bhadracharya Divyang University, Chitrakoot” के उपकुलपति (Vice Chancellor) हैं और विशेष रूप से विकलांग छात्रों की शिक्षा एवं सशक्तिकरण की दिशा में कार्य करते हैं।
- साहित्यिक कृतियाँ: उन्होंने संस्कृत और हिन्दी में कथाएँ, भक्ति ग्रंथ, तत्वमीमांसा आदि विषयों पर ग्रंथ लिखे। (आपके कथन अनुसार 80 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं — यह आंकड़ा व्यापक प्रचार में है, हालांकि त्वरित स्रोतों में पुष्टि नहीं मिली)
- राष्ट्रीय सम्मान: उन्हें भारत सरकार द्वारा Padma Vibhushan से सम्मानित किया गया है। समाचार सूत्रों में यही उल्लेख मिलता है। (www.ndtv.com)
- सामाजिक एवं धार्मिक भूमिका: वे रामकथा वाचन, सामाजिक संवाद और धर्म-समाज में सक्रिय भूमिका रखते हैं।
उनकी प्रतिष्ठा न केवल एक आध्यात्मिक नेता की है, बल्कि वह विकलांगों के अधिकारों, शिक्षा और आध्यात्मिक जीवन के आदर्शों की प्रेरणा हैं। ऐसे व्यक्ति पर अपमानजनक या प्रचारित सामग्री का असर सामाजिक रूप से गंभीर हो सकता है, विशेषकर उन विषयों पर जहाँ व्यक्ति की कमजोरियों का मजाक उड़ाया जाता है।
2. घटनाक्रम: विवादित वीडियो, याचिका और आदेश
2.1 विवाद की शुरूआत
याचिका के अनुसार, 29 अगस्त 2025 को गोरखपुर के यूट्यूबर शशांक शेखर, जो “Bedhadak Khabar” नामक चैनल चलाते हैं, उन्होंने एक वीडियो (“Rambhadracharya par Khulasa, 16 saal pahle kya hua tha”) प्रकाशित किया। इस वीडियो में आरोप है कि स्वामी रामभद्राचार्य की दृष्टिहीनता और अन्य विषयों पर अपमानजनक टिप्पणियाँ की गईं, उनका मजाक उड़ाया गया और गंभीर मानहानि की गई। (LawBeat)
इस वीडियो को YouTube, Facebook और Instagram पर साझा किया गया, और कथित है कि अनेक शिकायतों के बाद भी प्लेटफार्मों द्वारा उसे नहीं हटाया गया। (LawBeat)
2.2 याचिका दायर करना
याचिका Sharad Chandra Srivastava और अन्य सात अनुयायियों द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट (लखनऊ बेंच) में दायर की गई। (Hindustan Times) उनमें यह निवेदन किया गया कि अदालत इस आपत्तिजनक सामग्री को तुरंत हटाने का निर्देश दे और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए सख्त दिशानिर्देश निर्धारित करें ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो। (Live Law)
याचिका में यह भी कहा गया कि अनुरोध किए जाने पर URL लिंक दिए जाएँ ताकि प्लेटफार्म कार्रवाई कर सकें। (www.ndtv.com)
2.3 प्रारंभिक कोर्ट नोटिस और कार्रवाई
इससे पहले, 17 सितंबर 2025 को एक प्रारंभिक आदेश भी जारी हुआ था जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफार्मों (Facebook, Instagram, Google, YouTube) को नोटिस भेजा गया और कहा गया कि आपत्तिजनक सामग्री को तुरंत हटाया जाए। (LawBeat) उस आदेश में यह भी निर्देश था कि याचिकाकर्ता संबंधित सोशल मीडिया कंपनियों के grievance officers से संपर्क करें, और राज्य विकलांग अधिकार आयोग को YouTuber को नोटिस भेजने को कहा गया। (LawBeat)
2.4 8 अक्टूबर 2025 का आदेश: 48 घंटे में हटाने का निर्देश
जब मामले को 8 अक्टूबर 2025 को पुनः सुना गया, तब इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच (Justices Shekhar B. Saraf एवं Prashant Kumar) ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता यदि URL लिंक प्रदान करेंगे, तो Meta (Facebook, Instagram) और Google / YouTube को 48 घंटे के भीतर उक्त आपत्तिजनक वीडियो हटाना होगा। (Live Law)
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि यदि किसी लिंक को याचिका में दिया गया था और वह पहले ही हटा लिया गया हो, तो वह तथ्य प्रस्तुत कर दिया जाए। (Live Law)
साथ ही, अदालत ने कहा कि राज्य विकलांग अधिकार आयुक्त पहले ही YouTuber को नोटिस जारी कर चुके हैं और उसे 18 अक्टूबर को पेश होने को कहा गया है। (Live Law)
अंततः, अगली सुनवाई 11 नवंबर 2025 को तय की गई। (Law Trend - Legal News Network)
3. कानूनी आधार और चुनौतियाँ
इस विवाद में जो कानूनी प्रावधान और तर्क सामने आते हैं, वे बहुआयामी हैं। नीचे उन्हें विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं:
3.1 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम एवं मध्यस्थ (Intermediary) दायित्व
भारतीय कानून में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) और उससे जुड़े नियम — विशेषतः Information Technology (Intermediaries Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021 — मध्यस्थों (जैसे Meta, Google, YouTube) को दायित्व और सुरक्षा दोनों सीमाएँ देते हैं।
- यदि कोई सामग्री “अवैध” है (मानहानि, अभद्र भाषा, आतंकवादी सामग्री आदि), तो नियम के अनुसार यदि शिकायत की जाए, प्लेटफार्म को उसे हटाना चाहिए।
- प्लेटफार्मों को grievance redressal mechanism (शिकायत निवारण प्रक्रिया) रखनी होती है, जहाँ शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई हो।
- लेकिन प्लेटफार्मों की सुरक्षा (safe harbor) तब तक बनी रहती है जब वे “नॉन-नॉलेज” (knowledge या awareness) की स्थिति में नहीं हों — अर्थात् यदि उन्हें सामग्री या लिंक की जानकारी दी जाए तो उन्हें हटाना आवश्यक हो सकता है।
- इस मामले में, याचिकाकर्ता द्वारा URL लिंक देने के बाद अदालत ने 48 घंटे में कार्रवाई का आदेश दिया — इस आदेश में प्लेटफार्मों के दायित्व को स्पष्ट किया गया है। (Live Law)
इसलिए, प्लेटफार्मों के लिए यह एक चुनौती है कि वे किस हद तक स्वतः सेंसरशिप करें, उपयोगकर्ता की स्वतंत्रता बनाए रखें और अवैध / गलत सामग्री को हटाएँ।
3.2 विकलांगता अधिकार अधिनियम, 2016
स्वामी रामभद्राचार्य दृष्टिहीन हैं, और आरोप है कि वीडियो में उनकी विकलांगता का मजाक उड़ाया गया। भारत का Rights of Persons with Disabilities (RPwD) Act, 2016 (विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों का अधिनियम) ऐसे मामलों पर रक्षा कवच प्रदान करता है।
- अधिनियम में यह प्रावधान है कि विकलांग व्यक्ति की गरिमा का हनन नहीं किया जाना चाहिए।
- यदि सार्वजनिक सामग्री में विकलांगता को लेकर नकारात्मक, अपमानजनक या हिंसात्मक अभिव्यक्ति हो, तो यह अधिनियम के अंतर्गत आ सकती है।
- अदालत ने इस अधिनियम की संभावना की ओर इशारा किया है और राज्य विकलांग अधिकार आयोग को YouTuber को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। (Law Trend - Legal News Network)
इस प्रकार, यह मामला न केवल सामान्य मानहानि है, बल्कि विकलांगता अधिकारों से भी जुड़ा मामला बन गया है।
3.3 संविधान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं प्रतिष्ठा का संरक्षण
भारत के संविधान में धारा 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा करती है। लेकिन यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है; यह धारा 19(2) के तहत “अच्छी व्यवस्था, सुरक्षा, शिष्टाचार, प्रतिष्ठा” आदि कारणों से कुछ प्रतिबंध स्वीकार करती है।
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जब प्रस्तावित अभिव्यक्ति (मीडिया, वीडियो आदि) किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को अवमानित करती है, तो न्यायालय यह देखता है कि क्या वह अभिव्यक्ति “अवैध” है।
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इस मामले में, याचिकाकर्ता ने यह तर्क रखा कि वीडियो ने न केवल स्वामी का अपमान किया, बल्कि उनकी विकलांगता का मजाक उड़ाया — ऐसी अभिव्यक्ति संविधान की सीमाओं को पार कर सकती है।
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न्यायालयों को यह संतुलन बनाना होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे और साथ ही किसी की गरिमा, प्रतिष्ठा और अधिकारों का उल्लंघन न हो।
3.4 न्यायपालिका की भूमिका और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्मों की जवाबदेही
यह विवाद बड़े तकनीकी प्लेटफार्मों (Meta, Google, YouTube) और एक भारतीय अदालत के बीच एक टकराव की दिशा में बढ़ता है: किस हद तक विदेशी/बहुराष्ट्रीय प्लेटफार्मों को भारतीय न्यायपालिका के आदेशों का पालन करना चाहिए?
- न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह प्लेटफार्म भारत में परिचालित होते हैं और इसलिए उन्हें भारतीय कानूनों का पालन करना चाहिए। (Live Law)
- यह आदेश यह संकेत देता है कि यदि प्लेटफार्म स्वयं न हटाएँ, तो अदालत उन्हें बाध्य कर सकती है।
- यह भ्रष्ट उपयोग, द्विपक्षीय विवाद, या न्यायालयों के आदेशों को टालने की चुनौतियों को सामने लाता है।
4. न्यायालय और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के बीच संतुलन
यह मामला एक मीनार है जो यह दिखाती है कि न्यायालय और तकनीकी प्लेटफार्मों को किस तरह संतुलन स्थापित करना होगा:
- यदि न्यायालय हर शिकायत पर कठोर आदेश जारी करे, तो यह सेंसरशिप का दरवाजा खोल सकता है, और अभिव्यक्ति की आज़ादी को संकर सकते हैं।
- दूसरी ओर, यदि प्लेटफार्मों को पूरी तरह छोड़ दिया जाए, तो वे अनचाही, अपमानजनक और खतरनाक सामग्री का प्रसार होने देंेंगे।
- प्लेटफार्मों को खुद से त्वरित moderation (review, filtering) तंत्र विकसित करना होगा, विशेषकर संवेदनशील मामलों (मानहानि, विकलांगता, लिंग, जाति) में।
- न्यायालयों को “utmost restraint” (अत्यधिक संयम) दिखाना चाहिए, केवल उन मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए जो स्पष्ट अवैधता दिखाते हों।
- अपेक्षित है कि भविष्य में मध्यस्थों की जवाबदेही के मानक (intermediary liability standards) और सरकारी नीतियाँ स्पष्ट होंगी।
5. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम प्रतिष्ठा संरक्षण — एक संवेदनशील संतुलन
इस विवाद में प्रमुख प्रश्न है — क्या किसी की प्रतिष्ठा और गरिमा को मीडिया / सोशल मीडिया में अपमानित करना स्वीकार्य अभिव्यक्ति है?
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की नींव है — आलोचना, हस्तक्षेप और विचार-विमर्श के लिए अनिवार्य।
- लेकिन निरंकुश अभिव्यक्ति, जो किसी व्यक्ति को अपमानित करे, मानसिक पीड़ा पहुँचे, और उनके विशेष (जैसे विकलांगता) आधार पर उन्हें निशाना बनाए — उसे नियंत्रित किया जाना चाहिए।
- न्यायालयों को केस-दर-केस देखना होगा कि अभिव्यक्ति “अत्यधिक, अपमानजनक या अवांछित” सीमा पार करती है या नहीं।
- इस मामले में, याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क रखा है कि वीडियो ने न केवल आलोचना की, बल्कि व्यक्तिगत अपमान, विकलांगता का मजाक और मानहानि की। यदि यह साबित हो जाता है, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा नहीं की जा सकती।
6. चुनौतियाँ, नीतिगत सुझाव और निष्कर्ष
6.1 चुनौतियाँ
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URL लिंक निर्भरता: प्लेटफार्मों को कार्रवाई करने के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा URL देना अनिवार्य है — यदि लिंक नहीं मिले, तो कार्रवाई नहीं हो सकती।
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स्वचालित मॉडरेशन: हिन्दी / क्षेत्रीय भाषाओं में अभद्र या अपमानजनक भाषा पहचानने में तकनीकी चुनौतियाँ हैं।
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प्लेटफार्मों की जवाबदेही सीमा: यदि प्लेटफार्मों को न्यायालयीय आदेशों से छूट मिले, तो दायित्व अधूरा रह सकता है।
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जुर्माना / दंड की अनुपयुक्तता: यदि दंड निहित न हों, अपराधियों को रोकने की क्षमता कम हो सकती है।
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न्यायालयों की अधिभार समस्या: यदि हर अभद्र सामग्री पर याचिकाएँ हों, तो न्यायालयों पर अव्यवसायिक दबाव हो सकता है।
6.2 नीतिगत सुझाव
- स्व-नियमन तंत्र और पारदर्शी शिकायत प्रक्रिया: सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को भारत-विशिष्ट grievance redressal नीति और पारदर्शी moderation तंत्र रखना चाहिए।
- तेजी से हटाने की समयसीमा: वैध शिकायत मिलने पर प्लेटफार्म को निश्चित समय (जैसे 24–72 घंटे) में सामग्री हटानी चाहिए।
- URL-स्वचालन और AI आधारित पहचान: अपमानजनक/डिफेमेटरी सामग्री की भाषा मॉडल और AI उपकरणों से पहचान करना, विशेषकर स्थानीय भाषाओं में।
- हिस्सेदारी और प्रशिक्षण: उपयोगकर्ताओं को बताना चाहिए कि किस तरह से शिकायत करें, और प्लेटफार्मों को लगातार मॉडरेशन टीमों का प्रशिक्षण देना चाहिए।
- न्यायिक मॉनिटरिंग और रिपोर्टिंग: न्यायालयों को रिपोर्ट जारी करनी चाहिए कि किस तरह की याचिकाएँ आती हैं, कितनी सामग्री हटती है, और किस तरह के विवाद होते हैं।
- कानूनी स्पष्टता और दंड प्रावधान: यदि दायित्वों और दंडों का स्पष्ट कानून न हो, तो प्लेटफार्मों को प्रेरणा कम मिल सकती है।
स्वामी रामभद्राचार्य पर आपत्तिजनक वीडियो विवाद सिर्फ एक व्यक्तिगत मामले से कहीं आगे बढ़ता है — यह डिजिटल युग में अभिव्यक्ति, प्रतिष्ठा, विकलांगता अधिकार और प्लेटफार्म उत्तरदायित्व का संगम है। न्यायालय का 48-घंटे का आदेश साहसिक है, लेकिन यह संकेत देता है कि न्यायपालिका सोशल मीडिया को एक अछूता क्षेत्र नहीं मानती।
भविष्य में, हमें ऐसी नीति, तकनीकी ढाँचा और सामाजिक जागरूकता चाहिए जो अभिव्यक्ति की आज़ादी और व्यक्ति की गरिमा — दोनों को सुरक्षित रख सके। यह मामला संभवतः एक मिसाल बनेगा कि कैसे भारत डिजिटल युग में न्यायालयीय हस्तक्षेप और इंटरनेट प्लेटफार्मों की जवाबदेही को परिभाषित कर सकता है।

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