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पृथ्वी तेज़ घूम रही है — क्या सच है, क्यों, और हमारे लिए क्या मायने रखता है? (Earth’s speeding rotation, negative leap second, causes, impacts and uncertainties)

हमारे रोज़मर्रा के जीवन में दिन को 24 घंटे (86,400 सेकंड) माना जाता है। पर वैज्ञानिकों की बेहद सटीक मापें बताती हैं कि पृथ्वी की घूर्णन गति बिल्कुल स्थिर नहीं होती — कभी-कभी तेज़ होती है, कभी-कभी धीमी। हाल के वर्षों में (विशेषकर 2020 के बाद) पृथ्वी कुछ दिनों के लिए सामान्य से थोड़ा तेज़ घुमी है और कुछ दिनों की लंबाइयाँ कुछ मिलीसेकंड (milliseconds) तक छोटी पाई गई हैं। इस तरह के बदलाव आम जीवन में महसूस नहीं होते, पर टाइमकिपिंग सिस्टम, सैटेलाइट नेविगेशन और वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए मायने रखते हैं। कई रिपोर्टों ने 2025 के कुछ दिनों को “साल के सबसे छोटे दिनों” के रूप में सूचीबद्ध किया — उदाहरण के लिए जुलाई और अगस्त 2025 में 1.2–1.5 मिलीसेकंड की कमी का अनुमान लगाया गया था।

1) यह माप कैसे करते हैं — दिन की लंबाई क्या होती है?

वैज्ञानिक दो प्रकार के “दिन” पर बात करते हैं —

  • सौर दिन (solar day): एक दिन में सूरज के दो मध्य (noon-to-noon) के बीच का समय — यही दैनिक समय के लिए उपयोगी है।
  • साइडेरल दिन (sidereal day): पृथ्वी का एक पूरा चक्र सितारों के सापेक्ष।

हम जिन छोटे बदलावों की बात कर रहे हैं, वे सौर दिन की सूक्ष्म लंबाई के होते हैं — जो मिलीसेकंड स्तर पर बदलते हैं। यह माप अत्यंत सटीक एटोमिक घड़ियों और खगोलीय अवलोकनों के संयोजन से की जाती है। एटोमिक टाइम (TAI) और खगोलीय/सौर समय (UT1) के बीच अंतर को नियंत्रित करने के लिए Leap Second जैसी प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं।

2) हाल की खोजें — क्या 2024–2025 में दिन सचमुच छोटे हुए?

हाँ — हालिया निगरानी में 2024 और 2025 के कुछ दिनों को रिकॉर्ड में “असामान्य रूप से छोटे” दिन के रूप में नोट किया गया है। उदाहरण के लिए 2024 के कुछ दिनों में ~1.66 मिलीसेकंड की कमी दर्ज की गयी थी, और 2025 के कुछ दिनों (जैसे 9 जुलाई, 22 जुलाई, 5 अगस्त) के लिए ~1.2–1.5 मिलीसेकंड की कमी का अनुमान था। यह परिवर्तन 1–2 मिलीसेकंड के स्केल पर है — यानी सेकंड का एक छोटा-सा अंश।

महत्वपूर्ण: ये “कई मिलीसेकंड” के बदलाव मायने रखते हैं क्योंकि समय के अत्यंत-सटीक अनुप्रयोग (GPS, टेलीकॉम, वित्तीय नेटवर्क) इन्हीं पर निर्भर होते हैं — भले ही आम जीवन में हम इसे महसूस न करें।

3) क्यों तेज़ हो रही है — संभावित कारण क्या हैं?

पृथ्वी की रोटेशन स्पीड पर कई कारक असर डालते हैं। मुख्य कारणों में शामिल हैं:

  1. अंतःस्थलीय प्रक्रियाएँ (Earth’s interior dynamics)

    • पृथ्वी के तरल कोर और मैटल में होने वाली धाराएँ और आंदोलन धरती के रोटेशन पर प्रभाव डाल सकते हैं। कुछ अध्ययनों ने संकेत दिया कि पृथ्वी के भीतर की क्रियाएँ अचानक स्पिन में बदलाव ला सकती हैं।
  2. वायुमंडलीय प्रभाव (Atmosphere and winds)

    • विशाल हवाओं (जैसे जेट स्ट्रीम), मौसमी वितरण में बदलाव और बड़े पैमाने पर मौसमीय घटनाएं पृथ्वी के घूमने के पल (angular momentum) को बदल सकती हैं, जिससे मिनट-स्तरीय या मिलीसेकंड-स्तरीय प्रभाव पड़ते हैं। NASA और JPL के अध्ययनों में भी यह दर्शाया गया है कि जलवायु और वायुमंडल स्थापनाएँ पृथ्वी की रोटेशन पर प्रभाव डाल सकती हैं।
  3. हिम पिघलना और जल पुनर्वितरण (Melting ice and water redistribution)

    • ग्लेशियरों और आर्कटिक/अंटार्कटिक बर्फ के पिघलने से पानी का वितरण बदलता है — यदि पानी भूमध्यरेखा की ओर स्थानांतरित होता है तो पृथ्वी का क्यूबिक वितरण बदलता है और स्पिन पर असर पड़ा सकता है। कुछ अध्ययनों में यह सुझाया गया है कि जलवायु परिवर्तन दीर्घकालिक रूप से दिन लंबा भी कर सकता है; पर वर्तमान छोटे-समय वाले तेज़ी के कारणों में ये भी योगदान दे सकते हैं।
  4. ज्वारीय बल (Tidal friction)

    • पारंपरिक रूप से चंद्रमा की ज्वारीय खींच के कारण पृथ्वी की घूर्णन गति धीरे-धीरे कम होती आ रही है (सदियों/हजारों वर्षों में)। इसलिए दीर्घावधि प्रवृत्ति धीमी होती है, पर अस्थायी वृद्धि (जैसे 2020 के बाद) छोटी- अवधि के प्रभावों से हो सकती है।

संक्षेप में: छोटे, तेज़ बदलाव कई कारणों से आते हैं — कुछ आंतरिक, कुछ बाहरी — और अक्सर ये कारण मिश्रित होते हैं। वर्तमान में वैज्ञानिक इन विभिन्न योगदानों को समझने के लिए और अध्ययनों/मॉडलिंग की जरूरत बता रहे हैं।

4) Negative Leap Second — क्या है और क्यों ज़रूरी पड़ सकता है?

Leap second का नियम है ताकि एटोमिक समय (बहुत स्थिर) और सौर/खगोलीय समय (जो पृथ्वी की रोटेशन पर निर्भर करता है) में तालमेल बना रहे। अब तक सभी leap seconds “+1 सेकंड” के रूप में जोड़े गए हैं — मतलब UTC में एक सेकंड जोड़ा गया ताकि UTC और UT1 फिर से मेल खा सकें।

Negative leap second का मतलब होगा कि हमें UTC से एक सेकंड हटा देना पड़े — यानी समय को एक सेकंड पीछे करना — ताकि एटोमिक समय और पृथ्वी के घूमने का समय फिर से मेल खा सके। यह तब जरूरी होगा जब पृथ्वी एटोमिक समय के मुकाबले तेज़ घूमे और UT1 एटोमिक समय से “आगे” निकल जाए। अब तक negative leap second का प्रयोग कभी नहीं हुआ है; इसलिए इसका व्यवहारिक प्रभाव और तकनीकी तैयारी पूरी तरह से परखा नहीं गया है। वैज्ञानिक और समय-मानक संस्थाएँ इस संभावना पर गंभीरता से विचार कर रही हैं क्योंकि अगर ऐसा करना पड़ा, तो कई सिस्टम पर अप्रत्याशित प्रभाव हो सकते हैं।

5) क्या 2029 में एक सेकंड घटाना पड़ेगा? या 2035 तक बदलाव निश्चित है?

यहाँ असली अनिश्चितता है। कुछ विश्लेषणों और मॉडलिंग का संकेत है कि यदि वर्तमान तेज़ी जारी रही, तो भविष्य में (कुछ लेखों ने 2029 का नाम लिया है) negative leap second की ज़रूरत पड़ सकती है। लेकिन यह बिल्कुल निश्चित नहीं है — क्योंकि पृथ्वी की रोटेशन में छोटा-छोटा उतार-चढ़ाव सामान्य है और यह रुझान अचानक बदल भी सकता है। अनेक वैज्ञानिक इस बात पर भी जोर देते हैं कि negative leap second तकनीकी और सॉफ़्टवेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए चुनौतीपूर्ण होगा, इसलिए बहुत संभलकर निर्णय लेना होगा।

इसके अतिरिक्त, बहुसंख्यक देशों और संस्थाओं में leap second पॉलिसी पर बातचीत चल रही है — कुछ प्रस्ताव UTC को सुधारने (या leap second को पूरी तरह बंद) करने के पक्ष में हैं और 2035 तक कुछ तरह की रेफ़ॉर्म की संभावना पर चर्चा हुई है। पर यह “निश्चित” नहीं — यह निर्णय वैश्विक समयमानक बनाने वाली संस्थाओं (जैसे International Bureau of Weights and Measures, IERS, ITU आदि) पर निर्भर करेगा।

6) Negative leap second के प्रभाव — किसे चिंता होनी चाहिए?

यदि कभी negative leap second लागू हुआ, तो इससे प्रभावित होने वाले प्रमुख क्षेत्र यह हैं:

  • सैटेलाइट नेविगेशन (GPS/GLONASS/BeiDou) — कुछ सिस्टम UTC और GPS समय के मध्य तालमेल पर निर्भर हैं; बदलाव से समय-सिन्क में अस्थायी गड़बड़ी हो सकती है।
  • टेलीकम्युनिकेशन और नेटवर्किंग — टाइमस्टैम्पिंग, लॉगिंग और सिंक्रोनाइज़ेशन पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • फाइनेंशियल मार्केट्स — उच्च-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग टाइमस्टैम्पिंग के लिए सटीक समय जरूरी है।
  • वैज्ञानिक प्रयोग — कुछ संवेदनशील भौतिक प्रयोगों में मिलीसेकंड/माइक्रोसेकंड का फर्क मायने रखता है।

नुकसान की वजह यह नहीं कि एक सेकंड छोटा या बड़ा होगा, बल्कि यह है कि यह रीयल-टाइम सॉफ्टवेयर/हार्डवेयर और सिस्टम के assumptions (उदाहरण: "दिन कभी 86,400 सेकंड से छोटा नहीं होगा") को तोड़ सकता है। इसलिए negative leap second को लागू करने से पहले व्यापक परीक्षण, सॉफ़्टवेयर अपडेट और वैश्विक समन्वय की आवश्यकता होगी।

7) वैज्ञानिक समुदाय क्या सलाह दे रहा है?

  • अधिकांश वैज्ञानिक कहते हैं कि अभी घबराने की जरूरत नहीं — ये बदलाव बहुत छोटे पैमाने के हैं और दैनिक जीवन पर असर नहीं होगा।
  • समय-मानक संस्थाएँ (जैसे IERS, NIST) लगातार मॉनिटर कर रही हैं और आवश्यक होने पर सलाह देंगी। NIST में Leap Second FAQs और प्रक्रियाएँ उपलब्ध हैं।
  • कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि दुनिया को Lea p second जैसी प्रक्रिया के बजाय नया ढाँचा अपनाना चाहिए — ताकि लगातार बदलावों के लिए अधिक लचीलापन हो; इसी पर वैश्विक बहस जारी है।

8) आम व्यक्ति के लिए क्या मतलब होगा?

अधिकांश लोगों के लिए कोई प्रत्यक्ष या रोज़मर्रा में महसूस होने वाला असर नहीं होगा — आपका मोबाइल, घड़ी और रोज़मर्रा के उपकरण उसी तरह काम करेंगे। प्रभावित होने वाले मुख्य उपकरण और सेवाएँ वे हैं जिनमें अतिशय-सटीक समय-समन्वय आवश्यक है। इन क्षेत्रों के इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रबंधक आम तौर पर समय-समन्वय के बदलावों के लिए अपडेट जारी करते हैं।

9) अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या पृथ्वी की तेज़ी से दिन बहुत छोटे हो जाएंगे (जैसे घंटे तक)?
A: नहीं। मौजूदा बदलाव बहुत सूक्ष्म (मिलीसेकंड स्तर) हैं। पृथ्वी पर मौजूदा रुझान एक-दम घातक या घंटों तक दिन घटाने वाले नहीं दिखते। दीर्घकालिक रुझान (हजारों वर्षों में) में चंद्रमा की वजह से दिन धीरे-धीरे लम्बे होते आ रहे हैं।

Q2. क्या यह जलवायु परिवर्तन का संकेत है?
A: जलवायु परिवर्तन का असर पृथ्वी के rotational dynamics पर पहुँचता है — बर्फ पिघलने से जल का वितरण बदलता है, जिससे स्पिन पर प्रभाव पड़ सकता है। पर अभी जो तेज़ी देखी जा रही है, उसके पीछे कई छोटे-कालिक कारण भी हो सकते हैं (जैसे आंतरिक प्रक्रियाएँ, वायुमंडलीय दैर्ध्य) — इसलिए इसे सिर्फ़ एक कारण से जोड़ना सरल नहीं।

Q3. क्या negative leap second पहले कभी हुआ है?
A: नहीं — अब तक केवल positive leap seconds (UTC में सेकंड जोड़ना) का उपयोग हुआ है। Negative leap second का प्रयोग अभी तक इतिहास में नहीं हुआ। इसलिए इसका व्यवहारिक परीक्षण सीमित है और इसके संभावित जोखिमों पर चिंता है।

Q4. क्या मैं (या सरकार) कुछ कर सकता/सकती हूँ?
A: आम नागरिक के लिए कोई विशेष कदम नहीं। सरकारों और टेक कंपनियों को अपने समय-सिन्किंग सिस्टम्स के अपडेट और testing के लिए तैयार रहना चाहिए — पर यह कार्य संबंधित विशेषज्ञ एजेंसियाँ (NIST, IERS, ITU आदि) द्वारा संचालित होगा।

संदर्भ / स्रोत (नोट: प्रमुख स्रोतों में से कुछ)

  1. LiveScience — “Earth just had a freakishly short day...”, July 2025 रिपोर्ट।
  2. Space.com — “Mysterious boost to Earth's spin will make Aug. 5 one of the shortest days...” (2025).
  3. Scientific American — “Why Earth Is Rotating Extra Fast This Summer...” (2025).
  4. IFLScience — “Are We About To Get The First-Ever Negative Leap Second?” (2025).
  5. NIST — Leap Seconds FAQs (समय-मानक संस्था की गाइड)।
  6. NASA / JPL और PNAS के अध्ययन — जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी की rotation पर प्रभाव।
  7. Wikipedia / सामान्य संदर्भ — Leap second, Atomic clock (पार्श्व समझ के लिए)।

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