आज देश में तेजी से बढ़ती जनसँख्या और इस जनसँख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए और देश के औद्योगिक विकास को तेज करने के लिए खनिज तेलो की मांग तेजी से बढ़ रही है। जिस गति से हमारे देश में पेडरोलियम पदार्थ का उपयोग बढ़ रहा है। उस गति से देश के तेल भंडार अगले ४० या ५० सालो में समाप्त हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। इस स्थिति में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बस एक ही विकल्प बचा है और वो है ऊर्जा के नए साधनो की खोज जिनमे से एक "जैट्रोफा" भी है। यह पौधा देश के विभिन भागो में बहुत अधिक मात्रा में उगने वाला पौधा है। जिसे हम जंगली जैट्रोफा भी कहते है। इसके आलावा इसके और भी कई अन्य नाम भी है जैसे - जैट्रोफा मिथाईल ईस्टर , बायो डीजल , बायोफ्यूल जैव ईंधन , जैव डीजल, जैट्रोफा करकास आदि। यह एक इस पौधा है जो हमारी पेट्रोलियम की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है। जैट्रोफा करकास को साधारण रूप से देश में जैट्रोफा के नाम से ही जाना जाता है। इस उत्तर भारत में "रतन जोत" के नाम से पुकारा जाता है। यह वृक्ष बहुवर्षीय वृक्ष है इसके बीजो में लगभग ४०% तेल होता है। इसके बीजो से डीजल बनाने के सफल प्रयोग किये जा चुके है। इससे डीजल बनाने के लिए वास्तविक डीजल जिसे जीवाश्म डीजल कहते है में लगभग १८% जैट्रोफा के बीजो से प्राप्त तेल को मिलाकर "बायो डीजल" बनाया जाता है। इस प्रकार बने डीजल को डीजल चलित किसी भी इंजन में यानिकि बस, ट्रक ,ट्रैक्टर, पम्पसैट, जेनरेटर आदि सभी डीजल चलित उपकरणों में प्रयोग किया जा सकता है। जेट्रोफा का पौधा एक बार =उगने के बाद लगातार 8 - 10 वर्षो तक लगातार बीज देता रहता है इन बीजो से ४०% तेल प्राप्त होता है। जेट्रोफा से प्रारम्भिक उत्पादन प्रति हेक्टेयर लगभग 250 KG माना गया है। जो 5 सालो में १२ टन तक हो सकता है।
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भारत ज्ञान
Nice job
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