जान लॉगी बेयर्ड जन्म ब्रिटेन में ग्लास्गो कके समीप हेलन्सबर्ग में हुआ था। इनके पिता शिक्षित पादरी थे। बेयर्ड को फोटोग्राफी में बहुत रूचि थी। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद ख़राब सेहत के चलते उन्होंने अपने एक दोस्त के पास जाने का फैसला किया। अपने द्वारा बनायीं गयी चीजो की साथ वो रवाना हो गए। अपनी यात्रा के दौरान रेडियो केबिन के ऑपरेटर से उनकी अच्छी दोस्ती हो गयी। उन्होंने विचार बना लिया की क्यों न बिजली की मदत से हवा के माध्यम से तस्वीर भेजी जाये। बेयर्ड सन 1922 में लन्दन लौटे। रोजी थी नहीं और पैसा काम था। इसके बावजूद उन्होंने टेलेविज़न के अविष्कार की रुपरेखा बनाली और काम में जुट गये। उन्होंने चाय , बिस्कुट, और टोप रखने के पुराने डिब्बे खरीदे , कबाड़िये से बिजली की पुरानी मोटर ली और प्रोजेक्शन लेम्प , सिलेनियम सेल , नियॉन लैम्प एवं रेडियो वाल्व आदि टूटे फूटे उपकरणों की मदत से टेलीविज़न ट्रांसमीटर और रिसीवर बनाने में जुट गए। उन्हें पहली सफलता सन 1924 की वसंत में मिली , जब वे एक छाया को तीन गज तक प्रसारित करने में सफल रहे। आगे के प्रयोग के लिए पैसे न होने से उन्होंने अखबारों में इस्तिहार छपवाये तो कुछ धन की आमद हुई। लन्दन में धनाड्य व्यवसायी गार्डन सेलफ्रिज के बेटे ने भी मदत की बात की। बेयर्ड ने प्रसारण का प्राथमिक प्रदर्शन सेलफ्रिज की दुकान में ही किया। 2 अकटूबर 1925 को बेयर्ड रोमांचित हो उठे। उन्होंने अपने यन्त्र में प्रकाश को विद्युत किरणों में बदलने का उपकरण लगाकर स्विच न किया तो पाया की दृश्य हूबहू उभर आया है। चेहरे पर सफल प्रसारण के बाद उन्होंने सन 1926 में लन्दन में रॉयल इंस्टिट्यूशन में चलते फिरते टेलीविज़न के चित्रो के प्रेषण का प्रदर्शन किया। 1928 में उन्होंने एक कदम आगे बढकर रंगीन टेलीविज़न के बनाने का प्रयोग आरम्भ किए। और 1929 में जर्मन पोस्ट ऑफिस में टीवी सेवा के लिए अपनी सेवाएं प्रदान की। कालान्तर में मारकोनी ने बेयर्ड को पीछे छोड़ दिया। आर्थिक तंगी के शिकार और बीमार होने के बाद बेयर्ड ने 57 वर्ष की उम्र में ससेक्स में दम तोड़ दिया। वे अपने जिंदगी के आखरी पालो तक रंगीन टेलीविज़न के प्रयोग में लगे रहे। उनके अविष्कार का ही परिणाम है की आज पूरी दुनिया में टेलीविज़न एक जरुरत न गया है।
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