इतिहास:
मेरठ भारत का प्रसिद्ध नगर हे मेरठ प्राचीन काल से ही विख्यात रहा हे यहाँ से २३ मील उत्तर-पूर्व में स्थित एक स्थल विदुर का टीला की पुरातात्विक विभाग द्वारा की गयी खुदाई से ज्ञात हुआ था कि यह शहर प्राचीन नगर हस्तिनापुर का अवशेष है, जो महाभारत काल मे कौरवो के राज्य की राजधानी थी। जो काफी टाइम बहुत पहले गंगा नदी की बाढ़ में बह गयी थी| तथा एक अन्य प्रमाण के अनुसार रावण के नाम पर यहाँ का नाम मयराष्ट्र पड़ा था , जैसा की यह रामायण में वर्णित भी है। रामायण के राक्षस राज रावण की पत्नी मंदोदरी मेरठ की रहने वाली थी मंदोदरी के पिता का नाम मय दानव था , जो राक्षसों के वास्तुकार भी कहलाते थे मय दानव के नाम पर इसका प्राचीन नाम मयराष्ट्र था, जो समय के साथ-साथ बिगडकर मेरठ हो गया अब जिसे मेरठ के नाम से ही जाना जाता है छठी शताब्दी के बालु पत्थर से बने अशोक स्तंभ का एक भाग जिस पर अशोक ने ब्राह्मी लिपि मे राज्यादेश खुदवाये थे, यह मूल रूप से मेरठ मे मिला था और जो अब ब्रिटिश संग्राहलय मे रखा है।
मेरठ जिला मौर्य सम्राट अशोक के काल में (जोकि 273 इ.पु. से 232 इ.पु. तक था ) बौद्ध धर्म का केन्द्र रहा था , जिसके निर्माणों के अवशेष जामा मस्जि़द के पास वर्तमान में मिले हैं, दिल्ली के बड़ा हिन्दू राव अस्पताल, दिल्ली विश्वविद्यालय के निकट स्थान पर अशोक स्तंभ, फिरोज़ शाह तुगलक (1351 – 1388) द्वारा दिल्ली लाया गया था। बाद में यह स्तम्भ 1713 में, एक बम धमाके में ध्वंस हो गया था , एवं इसे 1867 में जीर्णोद्धार किया गया था | बाद में मुगल सम्राट अकबर के शासन काल (1556-1605) में यहां तांबे के सिक्कों की टकसाल थी| ११ वी शताब्दी में मेरठ जिले का दक्षिण-पश्चिमी भाग, बुलंदशहर के दोर – राजा हरदत्त द्वारा शासित हुआ करता था, जिसने एक किला बनवाया था, उस किले का आइन-ए-अकबरी में उल्लेख भी है, बाद में वह राजा महमूद गज़नी द्वारा 1018 में पराजित हुआ| मेरठ शहर पर पहला बड़ा आक्रमण मुहम्मद गोरी द्वारा 1192 में किया गया था , जब उसके जनरल कुतुबुद्दीन ऐबक ने शहर पर हमला कर के शहर के ज्यादातर हिन्दू मंदिरों को मस्जिदों में बदल दिया था | लेकिन इससे भी बुरा शहर का भाग्य अभी आगे खड़ा था, जब तैमूर लंग ने 1398 में आक्रमण किया था, जिसको राजपूतों ने कड़ी टक्कर दी थी | यह आक्रमण लोनी के किले पर हुआ था , जहां उन्होंने दिल्ली के सुल्तान महमूद तुगलक के साथ भी युद्ध किया परंतु अन्त में वे सब हार गये और बाद में सभी एक लाख युद्ध बंदी मौत के घाट उतार दिये गये थे| तैमूर लंग के अपने ये सभी उल्लेख तुज़ुक-ए-तैमूरी में मिलते है| उसके बाद, वह दिल्ली पर आक्रमण करने आगे बढ़ गया जहां तैमूर लंग ने फिर स्थानीय लोगों का हत्याकाण्ड किया था और वापस मेरठ पर हमला बोला दिया, जहां तब एक अफगन मुख्य का शासन के रूप में था| उसने नगर को दो दिनों में कब्ज़ा किया, जिसमें बहुत बड़ा विनाश सम्मिलित था
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
मेरठ का नाम ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिये भी प्रसिद्ध रहा है| भारत प्रसिद्ध का नारा "दिल्ली चलो" पहली बार मेरठ से दिया गया था| मेरठ की छावनी वह स्थान है, जहां हिन्दू तथा मुस्लिम सैनिकों को बन्दूकें दी गयीं तथा जिनमें बंदूको में जानवरों की खाल से बनी गोलियां डालनी पड़तीं थीं, जिन गोलियों मुंह से खोलना पड़ता था| जिससे हिन्दुओं और मुसलमानों की धार्मिक भावना आहत हुई थी , क्योंकि वह जानवर की चर्बी गाय व सूअर की होती थी| गाय को हिन्दुओं के लिये पवित्र माना जाता है, और सूअर मुसलमानों के लिये अछूत पशु माना जाता है| मेरठ तभी से अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि में आया था जब 1857 का विद्रोह हुआ था | २४ अप्रैल,१८५७ को; तृतीय अश्वारोही सेना की 90 में से 85 टुकड़ियों ने गोलियों को छूने से मना कर दिया था | उन्हें कोर्ट-मार्शल के बाद 10 वर्ष का कारावस मिला| इसके विद्रोह से ही, ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति पाने की पहली चिंगारी यहाँ भड़क उठी थी, इस संग्राम में शहरी जनता का पूरा समर्थन मिला| मेरठ में ही मेरठ षड्यंत्र का मामला मार्च १९२९ में हुआ था जो मेरठ विद्रोह के रूप में प्रसिद्ध है | इसमें कई व्यापार संघों को और ३ अंग्रेज़ों को गिरफ्तार किया गया था जो भारतीय रेलवे की हड़ताल कराने वालो में सामिल थे| इस पर इंग्लैंड का डायरेक्ट ध्यान गया, जिसे वहां के प्रसिद्ध मैन्चेस्ट्र स्ट्रीट थियेट्स्र ग्रुप ने अपने “रड मैगाफोन” नामक नाटक में दिखाया, जिसमें वहाँ के कोलोनाइज़ेशन व औद्योगिकरण के हानिकारक प्रभावो को दिखाया गया था|
मेरठ का पौराणिक महत्व:
मेरठ में ही महाभारत में वर्णित लाक्षागृह जिसका निर्माण पांडवों को जीवित जलाने हेतु दुर्योधन ने करवाया था, यहीं पास में बरनावा (प्राचीनकाल वार्णावत ) में स्थित था। यह स्थान मेरठ-बड़ौत मार्ग पर पड़ता है।
रामायण में वर्णित श्रवण कुमार जो आपने बूढ़े माता पिता को तीर्थ यात्रा कराने ले जा रहा था। जिनको श्रवण कुमार ने कावर में बिठाया हुआ था। इसी स्थान पर आकर , श्रवण कुमार ने प्यास के मारे, उन्हें जमीन पर रखा था , व बर्तन लेकर सरोवर से जल लेने गया था । उसके बर्तन की पानी में आवाज को सुनकर शिकार के लिए निकले महाराजा दशरथ ने उसे जानवर समझ कर तीर चला कर मार दिया था। उसके दुःख में ही उसके माता पिता ने भी तड़प-तड़प कर प्राण त्याग दिए थे लेकिन मरते हुए, उन्होंने दशरथ को शाप दिया कि जिस प्रकार हम अपने पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने पुत्र के वियोग में प्राण त्यागोगे और बाद में वैसा ही हुआ था मेरठ को रावण की ससुराल भी माना जाता है।
रामायण में वर्णित श्रवण कुमार जो आपने बूढ़े माता पिता को तीर्थ यात्रा कराने ले जा रहा था। जिनको श्रवण कुमार ने कावर में बिठाया हुआ था। इसी स्थान पर आकर , श्रवण कुमार ने प्यास के मारे, उन्हें जमीन पर रखा था , व बर्तन लेकर सरोवर से जल लेने गया था । उसके बर्तन की पानी में आवाज को सुनकर शिकार के लिए निकले महाराजा दशरथ ने उसे जानवर समझ कर तीर चला कर मार दिया था। उसके दुःख में ही उसके माता पिता ने भी तड़प-तड़प कर प्राण त्याग दिए थे लेकिन मरते हुए, उन्होंने दशरथ को शाप दिया कि जिस प्रकार हम अपने पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने पुत्र के वियोग में प्राण त्यागोगे और बाद में वैसा ही हुआ था मेरठ को रावण की ससुराल भी माना जाता है।
नौचंदी मेला
मेरठ का प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक नौचंदी मेला जो हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है मेरठ में ही है। हजरत बालेमियां की दरगाह और नवचण्डी देवी का मंदिर जिसे नौचन्दी देवी के नाम से जानते है एक दूसरे के निकट में ही स्थित हैं। मेरठ का ये मेला चैत्र मास के नवरात्रि त्यौहार से एक सप्ताह पहले आरम्भ हो जाता है और होली के एक सप्ताह बाद तक चलता है ये मेला एक माह चलता है ।
पर्यटन स्थल
- पांडवो का किला - यह किला मेरठ के बरनावा क्षेत्र में स्थित है। महाभारत से सम्बंधित इस किले में अनेक प्राचीन मूर्तियां देखने को मिलती हैं। कहा जाता है कि यह किला पांडवों ने बनवाया था। और दुर्योधन ने पांडवों को उनकी मां साथ यहां जिन्दा जलाने का षडयंत्र रचा था लेकिन वे एक भूतिगत सुरंग के माध्यम से बच निकले थे।
- मेरठ की शहीद स्मारक - ये स्मारक मेरठ के उन बहादुर शहीदों को समर्पित है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह स्मारक संगमरमर से बना है इसकी उचाई 30 मीटर है।
- शाहपीर का मकबरा - यह मकबरा मुगलकालीन ईमारत है। ये मकबरा मेरठ के ओल्ड शाहपुर गेट के निकट स्थित है। मकबरे के निकट ही लोकप्रिय सूरज कुंड स्थित है।
- हस्तिनापुर तीर्थ - हस्तिनापुर तीर्थ स्थल जैनियों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है। यहां का एक मंदिर जैन तीर्थंकर शांतिनाथ को समर्पित है। ऐतिहासिक दृष्टि से ये स्थान जैनियों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि जैनियों के तीसरे तीर्थंकर आदिनाथ ने 400 दिन का उपवास रखा था। यहाँ पर इस मंदिर का संचालन हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ समिति द्वारा किया जाता है।
- रोमन कैथोलिक चर्च - मेरठ के सरधाना में स्थित रोमन कैथोलिक चर्च अपनी खूबसूरत कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। ये चर्च मैरी को समर्पित है, इस चर्च का डिजाइन इटालिक वास्तुकार एंथनी रघेलिनी के द्वारा तैयार किया था। सन 1822 में इस चर्च को बनवाने की लागत 0.5 मिलियन रूपये आयी थी। इस भवन की निर्माण साम्रगी जुटाने के लिए यहाँ आसपास खुदाई की गई थी। ये खुदाई वाला हिस्सा आगे चलकर दो झीलों में तब्दील हो गया।
- सेन्ट जॉन चर्च - मेरठ में 1819 में इस चर्च को ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से चेपलिन रेव हेनरी फिशर ने स्थापित करवाया था। सेन्ट जॉन चर्च चर्च की गणना उत्तर भारत के सबसे प्राचीन चर्चो में की जाती है। मेरठ के इस विशाल चर्च में दस हजार लोगों के बैठने के लिए स्थान है।
- नंगली तीर्थ - यहाँ का पवित्र नंगली तीर्थ मेरठ जिले के नंगली गांव में स्थित है। नंगली का यह तीर्थ स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज की समाधि की वजह से बहुत लोकप्रिय है। मुख्य सड़क से तीर्थ तक यहाँ 84 मोड़ हैं जो चौरासी लाख योनियों के मुक्ति के प्रतीक मने जाते हैं। भारत के विविध हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं।
- सूरज कुंड -मेरठ में इस पवित्र कुंड का निर्माण एक धनी व्यापारी लावार जवाहर लाल के द्वारा 1714 ई. में करवाया गया था। प्रारंभ में मेरठ के अबु नाला से इस कुंड को जल प्राप्त हुआ करता था। लेकिन वर्तमान में गंग नहर से इसे जल प्राप्त होता है। सूरज कुंड के आस-पास में अनेक मंदिर बने हुए हैं जिनमें मंदिरो में मनसा देवी मंदिर और बाबा मनोहर नाथ का मंदिर प्रमुख हैं। यहाँ ये मंदिर शाहजहां के काल में बने थे।
- जामा मस्जिद - मेरठ की कोतवाली के निकट स्थित इस मस्जिद का यह निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया गया था।
- द्रोपदी की रसोई - मेरठ में द्रोपदी की रसोई हस्तिनापुर में बर गंगा नदी के तट पर स्थित है। ये माना जाता है कि महाभारत काल में बर गंगा नदी के तट पर द्रोपदी की रसोई थी।
- हस्तिनापुर अभयारण्य - मेरठ के इस अभ्यारण्य की स्थापना 1986 में की गई थी। 2073 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैले इस अभ्यारण्य में अनेक अनेक प्रकार के पशु और जीवो जैसे सांभर, चीतल, जंगली बिल्ली, मृग, तेंदुआ, हैना, नीलगाय, आदि पशुओं के अलावा पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखने को मिलती हैं। नंवबर से जून का समय यहां आने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। मेरठ के इस अभ्यारण्य का एक हिस्सा गाजियाबाद, बिजनौर और ज्योतिबा फुले नगर के अन्तर्गत भी आता है।
शिक्षा
मेरठ नगर में कई विश्वविद्यालय हैं,
- चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय,
- सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,
- शोभित विश्वविद्यालय एवं
- स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय।
इसके अलावा मेरठ में कई अन्य महाविद्यालय एवं विद्यालय हैं।
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